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आईएमए अध्यक्ष डॉ. आरवी अशोकन द्वारा भ्रूण लिंग जाँच को वैध बनाने की वकालत: एक विवादित बयान

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परिचय

हाल ही में, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अध्यक्ष डॉ. आरवी अशोकन ने गोवा में भ्रूण लिंग जाँच को वैध बनाने की वकालत की, जिससे व्यापक विवाद उत्पन्न हुआ। उनका तर्क है कि मौजूदा पीसी-पीएनडीटी (प्री-कंसेप्शन एंड प्री-नैटल डायग्नोस्टिक टेक्निक्स) क़ानून ने लिंगानुपात में अपेक्षित सुधार नहीं किया है। इस बयान ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनीतिक हलकों में तीखी बहस छेड़ दी है।

पीसी-पीएनडीटी क़ानून का इतिहास

H2: पीसी-पीएनडीटी क़ानून क्या है?
पीसी-पीएनडीटी क़ानून 1994 में भारत में लागू किया गया था, जिसका उद्देश्य गर्भधारण से पहले और गर्भावस्था के दौरान लिंग चयन को रोकना था। इस क़ानून के तहत भ्रूण लिंग जाँच को पूरी तरह से अवैध घोषित कर दिया गया है ताकि लिंग आधारित गर्भपात पर नियंत्रण पाया जा सके।

H3: लिंगानुपात का महत्व
लिंगानुपात किसी भी समाज के स्वास्थ्य और संतुलन का महत्वपूर्ण सूचकांक होता है। भारत में लिंगानुपात में गिरावट देखी गई है, खासकर कुछ राज्यों में, जहां कन्या भ्रूण हत्या एक बड़ी समस्या बनी हुई है। इस संदर्भ में, पीसी-पीएनडीटी क़ानून को लागू किया गया ताकि लिंग भेदभाव के आधार पर भ्रूण हत्या को रोका जा सके।

डॉ. अशोकन का तर्क

H2: भ्रूण लिंग जाँच को वैध बनाने की आवश्यकता
डॉ. आरवी अशोकन का मानना है कि भ्रूण लिंग जाँच को वैध बनाकर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है। उनका कहना है कि वर्तमान क़ानून ने लिंगानुपात को सुधारने में ज्यादा कारगर साबित नहीं हुआ है। उनका तर्क यह है कि लिंग जाँच को वैध बनाने से इस समस्या का सामना करने के लिए एक नई रणनीति विकसित की जा सकती है।

H3: पीसी-पीएनडीटी क़ानून की विफलता पर विचार
डॉ. अशोकन का कहना है कि पीसी-पीएनडीटी क़ानून लागू होने के बावजूद लिंगानुपात में सुधार देखने को नहीं मिल रहा है। उनके अनुसार, यह क़ानून न केवल अप्रभावी है, बल्कि यह भ्रूण लिंग जाँच से जुड़ी अवैध गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है।

विवाद और आलोचना

H2: सामाजिक कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रिया
डॉ. अशोकन के इस बयान पर सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कड़ी आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि भ्रूण लिंग जाँच को वैध बनाना लिंग भेदभाव और कन्या भ्रूण हत्या को और अधिक प्रोत्साहित कर सकता है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम सामाजिक असमानता को और बढ़ा सकता है।

H3: सरकार और स्वास्थ्य संगठनों की प्रतिक्रिया
सरकारी अधिकारियों और विभिन्न स्वास्थ्य संगठनों ने भी डॉ. अशोकन की इस टिप्पणी की कड़ी निंदा की है। उनके अनुसार, भ्रूण लिंग जाँच को वैध बनाना पीसी-पीएनडीटी क़ानून के उद्देश्यों के खिलाफ जाता है और इससे समाज में नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

भ्रूण लिंग जाँच और समाज पर इसका प्रभाव

H2: लिंगानुपात की असमानता और उसके परिणाम
लिंगानुपात में असमानता से समाज पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं। इससे महिलाओं के प्रति भेदभाव और हिंसा की घटनाएं बढ़ सकती हैं। कई अध्ययनों ने यह साबित किया है कि जिन देशों में लिंगानुपात में असमानता होती है, वहां सामाजिक ताना-बाना कमजोर होता है और यह असंतुलन आर्थिक और सामाजिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।

H3: भ्रूण लिंग जाँच का मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रभाव
भ्रूण लिंग जाँच को वैध बनाने से समाज में मानसिकता बदलने की बजाय यह लिंग आधारित भेदभाव को और अधिक गहराई तक पहुंचा सकता है। लोगों के मन में भ्रूण की लिंग पहचान के आधार पर निर्णय लेने की प्रवृत्ति बढ़ सकती है, जिससे महिलाओं के प्रति सम्मान और समानता की भावना कमजोर हो सकती है।

क्या भ्रूण लिंग जाँच को वैध बनाना समाधान है?

H2: वैधता के पक्ष और विपक्ष
वैधता के पक्ष में जो तर्क दिए जाते हैं, वे मुख्य रूप से यह हैं कि भ्रूण लिंग जाँच को वैध बनाकर अवैध तरीकों और भ्रूण हत्या को रोका जा सकता है। वहीं, विपक्षी तर्क यह है कि इससे लिंग आधारित भेदभाव और कन्या भ्रूण हत्या की घटनाओं में वृद्धि हो सकती है।

H3: वैकल्पिक उपाय क्या हो सकते हैं?
कई विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को भ्रूण लिंग जाँच को वैध बनाने की बजाय जागरूकता अभियानों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। लिंग भेदभाव के प्रति समाज को शिक्षित करना, महिलाओं के अधिकारों को सशक्त करना, और सख्त कानूनों के साथ इस मुद्दे का समाधान किया जा सकता है।

निष्कर्ष

डॉ. आरवी अशोकन द्वारा भ्रूण लिंग जाँच को वैध बनाने की वकालत ने एक गंभीर और संवेदनशील मुद्दे को फिर से चर्चा में ला दिया है। हालांकि उनका तर्क है कि मौजूदा क़ानून लिंगानुपात को सुधारने में सफल नहीं रहा है, लेकिन इस बयान के निहितार्थों को समझते हुए, समाज और सरकार को इस दिशा में सोच-समझकर कदम उठाने की आवश्यकता है। भ्रूण लिंग जाँच का वैधीकरण न केवल महिलाओं के प्रति असमानता को बढ़ावा दे सकता है, बल्कि यह सामाजिक असंतुलन का कारण भी बन सकता है।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)

Q1: भ्रूण लिंग जाँच को वैध बनाने का क्या अर्थ है?
A1: इसका मतलब होगा कि डॉक्टर गर्भावस्था के दौरान भ्रूण के लिंग की पहचान कर सकते हैं, जो वर्तमान में भारत में अवैध है।

Q2: पीसी-पीएनडीटी क़ानून का मुख्य उद्देश्य क्या है?
A2: इसका मुख्य उद्देश्य लिंग चयन और भ्रूण हत्या को रोकना है ताकि लिंगानुपात को संतुलित किया जा सके।

Q3: भ्रूण लिंग जाँच को वैध बनाने के क्या परिणाम हो सकते हैं?
A3: इससे लिंग भेदभाव और कन्या भ्रूण हत्या की घटनाओं में वृद्धि हो सकती है, जिससे समाज में असंतुलन पैदा हो सकता है।

Q4: क्या लिंगानुपात में सुधार के लिए अन्य उपाय हो सकते हैं?
A4: हां, समाज में जागरूकता फैलाना, महिलाओं के अधिकारों को सशक्त करना, और सख्त कानून लागू करना लिंगानुपात में सुधार के वैकल्पिक उपाय हो सकते हैं।

Q5: डॉ. आरवी अशोकन के इस बयान पर सामाजिक प्रतिक्रिया क्या रही है?
A5: सामाजिक कार्यकर्ताओं और सरकारी अधिकारियों ने इस बयान की कड़ी आलोचना की है, क्योंकि यह लिंग आधारित भेदभाव को बढ़ावा देने वाला कदम माना जा रहा है।

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